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सबब खुला ये हमें उन के मुँह छुपाने का
उडा न ले कोई अन्दाज़ मुस्काराने का
जफाऐं करते है थम थम के इस ख्याल से वो
गया तो फिर ये नही मेरे हाथ आने का
ख़ता मुआफ, तुम ऐ ‘दाग़’ और ख्वाहिश-ए-वस्ल
क़ुसूर है ये फ़क़त उन के मुँह लगाने का
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