Monday, March 15, 2010

दाग़ की शायरी - 1

दाग की ग़ज़लों के चन्द अशआर

(1)

सबब खुला ये हमें उन के मुँह छुपाने का
उडा न ले कोई अन्दाज़ मुस्काराने का

जफाऐं करते है थम थम के इस ख्याल से वो
गया तो फिर ये नही मेरे हाथ आने का

ख़ता मुआफ, तुम ऐ ‘दाग़’ और ख्वाहिश-ए-वस्ल
क़ुसूर है ये फ़क़त उन के मुँह लगाने का

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